“विक्टर एम्ब्रोस और गैरी रुवकुन को 2024 का Nobel Prize Micro RNA की खोज और जीन विनियमन में इसकी भूमिका के लिए दिया गया। जानें, कैसे इस खोज ने चिकित्सा विज्ञान में नई संभावनाओं के द्वार खोले।”
Highlights
Nobel Prize Micro RNA: माइक्रोआरएनए की क्रांतिकारी खोज
विक्टर एम्ब्रोस और गैरी रुवकुन को 2024 का फिजियोलॉजी या मेडिसिन का नोबेल पुरस्कार दिया गया है। उन्हें यह पुरस्कार माइक्रोआरएनए (microRNA) की खोज और जीन नियंत्रण में इसकी भूमिका के लिए सम्मानित किया गया है। यह खोज बताती है कि छोटे आरएनए अणु जीन की गतिविधियों को किस तरह नियंत्रित करते हैं, जिससे जीन विनियमन की दुनिया में एक नई दिशा मिली है।
नोबेल असेंबली द्वारा चयनित विजेता
इस पुरस्कार का चयन स्वीडन की कैरोलिंस्का इंस्टीट्यूट की नोबेल असेंबली द्वारा किया जाता है। इस साल के विजेताओं को 11 मिलियन स्वीडिश क्राउन (लगभग 1.1 मिलियन डॉलर) की पुरस्कार राशि दी जाएगी। चिकित्सा क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार के इतिहास में कई प्रमुख वैज्ञानिकों को सम्मानित किया गया है। इनमें से 1904 में इवान पावलोव और 1945 में पेनिसिलिन की खोज के लिए अलेक्जेंडर फ्लेमिंग शामिल हैं।
Nobel Prize Micro RNA: माइक्रोआरएनए और जीन विनियमन
विक्टर एम्ब्रोस और गैरी रुवकुन की यह खोज जीन के विनियमन में माइक्रोआरएनए के महत्व को उजागर करती है। 1993 में, इन वैज्ञानिकों ने सी. एलिगेंस नामक एक छोटे राउंडवॉर्म पर प्रयोग किए, और पाया कि जीन की गतिविधियों को केवल प्रोटीन ही नहीं, बल्कि छोटे आरएनए अणु भी नियंत्रित करते हैं। माइक्रोआरएनए यह तय करते हैं कि डीएनए से बनने वाले मैसेंजर आरएनए (एमआरएनए) से कौन-सा प्रोटीन बनेगा, जिससे जीन का नियंत्रण बहुत प्रभावशाली हो जाता है।
Nobel Prize Micro RNA: शुरुआती संदेह और व्यापकता
शुरुआती दौर में यह माना गया कि माइक्रोआरएनए का यह तंत्र केवल राउंडवॉर्म तक सीमित है। लेकिन आगे के शोध में यह साबित हुआ कि यह प्रक्रिया सभी जीवों में मौजूद है। 2001 तक, यह सिद्ध हो गया कि अकशेरुकी और कशेरुकी दोनों प्रकार के जीवों में माइक्रोआरएनए की महत्वपूर्ण भूमिका है। वर्तमान में, मानव जीनोम में 1,000 से अधिक माइक्रोआरएनए पाए गए हैं, जो जीन के विनियमन में गहरा प्रभाव डालते हैं।
Nobel Prize Micro RNA: माइक्रोआरएनए और बीमारियों से संबंध
माइक्रोआरएनए की असामान्य गतिविधि कई गंभीर बीमारियों, जैसे कैंसर, मधुमेह, और ऑटोइम्यून रोगों से जुड़ी हुई है। कैंसर के मामलों में, माइक्रोआरएनए की अनियमितता कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि और ट्यूमर के विकास को बढ़ावा देती है। यह न केवल कैंसर की उत्पत्ति को प्रभावित करता है, बल्कि शरीर में ट्यूमर के फैलने की प्रक्रिया को भी नियंत्रित करता है।
इसके अलावा, माइक्रोआरएनए का असंतुलन ऑटोइम्यून रोगों में भी देखा गया है। यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर सकता है, जिससे शरीर अपने ही ऊतकों पर हमला करता है, जैसे कि रुमेटीइड गठिया और मल्टीपल स्केलेरोसिस जैसी बीमारियों में देखा जाता है।
Nobel Prize Micro RNA: भविष्य के उपचार और नई संभावनाएं
माइक्रोआरएनए की इस खोज ने चिकित्सा के क्षेत्र में नए उपचार और निदान के अवसर पैदा किए हैं। अब तक कई माइक्रोआरएनए आधारित डायग्नोस्टिक उपकरण और बायोमार्कर विकसित किए जा चुके हैं, और इनका नैदानिक परीक्षणों में इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके साथ ही, माइक्रोआरएनए को लक्षित करने वाली दवाओं पर भी शोध हो रहा है, जो कैंसर और अन्य जटिल बीमारियों के इलाज में प्रभावी साबित हो सकती हैं।
विक्टर एम्ब्रोस और गैरी रुवकुन की यह खोज जीन विनियमन की हमारी समझ को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इसका भविष्य में चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाओं पर बड़ा प्रभाव पड़ने की संभावना है।
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