महाराष्ट्र सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए देशी गायों को ‘राजमाता’ का दर्जा दिया है। यह फैसला 30 सितंबर को राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन द्वारा जारी एक सरकारी प्रस्ताव के माध्यम से किया गया। इस कदम का उद्देश्य देशी गायों की घटती संख्या को रोकना और किसानों को इनके पालन के लिए प्रोत्साहित करना है।
गाय का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व
भारत में गाय को माता के रूप में सम्मानित किया जाता है। प्राचीन काल से ही गाय को ‘कामधेनु’ कहा जाता है, जो सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाली मानी जाती है। गाय का दूध, गोमूत्र और गोबर का धार्मिक अनुष्ठानों, खेती और आयुर्वेदिक दवाइयों में विशेष महत्व है। गाय का दूध स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी होता है, जबकि गोबर और गोमूत्र का उपयोग जैविक खेती और चिकित्सा में किया जाता है।
देशी गायों की घटती संख्या पर चिंता
महाराष्ट्र में देशी गायों की कई नस्लें हैं, जैसे:
- देओनी और लाल कंधारी (मराठवाड़ा)
- खिल्लार (पश्चिम महाराष्ट्र)
- डांगी (उत्तर महाराष्ट्र)
- गवली (विदर्भ)
2019 की पशुगणना के अनुसार, देशी गायों की संख्या में 20.69% की कमी आई है। यह गिरावट किसानों और सरकार के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि देशी गायें पारंपरिक कृषि और आयुर्वेदिक चिकित्सा के लिए महत्वपूर्ण हैं।
किसानों के लिए आर्थिक सहायता योजना
देशी गायों के संरक्षण के लिए सरकार ने एक आर्थिक सहायता योजना शुरू की है। इस योजना के तहत:
- गोशालाओं में देशी गायों के पालन के लिए किसानों को प्रति गाय 50 रुपये प्रतिदिन की सब्सिडी मिलेगी।
- योजना का प्रबंधन महाराष्ट्र गोसेवा आयोग द्वारा ऑनलाइन किया जाएगा।
- प्रत्येक जिले में एक जिला गोशाला सत्यापन समिति बनाई जाएगी।
इससे किसानों को आर्थिक मदद मिलेगी और वे देशी गायों के पालन के लिए प्रोत्साहित होंगे।
जैविक खेती और आयुर्वेद में योगदान
देशी गायों से प्राप्त गोबर और गोमूत्र जैविक खेती में महत्वपूर्ण हैं। गोबर से बनी खाद भूमि की उर्वरता बढ़ाती है, जिससे फसलें बेहतर होती हैं। गोमूत्र का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में किया जाता है, जिसे पंचगव्य चिकित्सा कहा जाता है।
सरकार का दृष्टिकोण
उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा:
“देशी गायें हमारे किसानों के लिए वरदान हैं। इसलिए हमने उन्हें ‘राजमाता’ का दर्जा देने का फैसला किया है। हम गोशालाओं को देशी गायों के पालन के लिए सहायता भी प्रदान करेंगे।”
महाराष्ट्र सरकार का यह फैसला देशी गायों के संरक्षण और कृषि में उनके महत्व को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे न केवल किसानों को आर्थिक सहायता मिलेगी, बल्कि जैविक खेती और आयुर्वेदिक चिकित्सा को भी प्रोत्साहन मिलेगा। देशी गायें हमारी संस्कृति और परंपरा का अभिन्न हिस्सा हैं, और उन्हें ‘राजमाता’ का दर्जा देना इस धरोहर को संजोने का सार्थक प्रयास है।
मुख्य बिंदु:
- महाराष्ट्र सरकार ने देशी गायों को ‘राजमाता’ का दर्जा दिया।
- देशी गायों की घटती संख्या को रोकने के लिए आर्थिक सहायता योजना शुरू की गई।
- किसानों को प्रति गाय 50 रुपये प्रतिदिन की सब्सिडी मिलेगी।
- जैविक खेती और आयुर्वेदिक चिकित्सा को बढ़ावा मिलेगा।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: देशी गायों को ‘राजमाता’ का दर्जा देने का क्या महत्व है?
उत्तर: इसका उद्देश्य देशी गायों की घटती संख्या को रोकना, उनके संरक्षण को बढ़ावा देना और किसानों को इनके पालन के लिए प्रोत्साहित करना है।
प्रश्न 2: किसानों को क्या लाभ मिलेगा?
उत्तर: किसानों को प्रति गाय 50 रुपये प्रतिदिन की आर्थिक सहायता मिलेगी, जिससे उनके आर्थिक बोझ में कमी आएगी।
प्रश्न 3: यह योजना कैसे लागू की जाएगी?
उत्तर: योजना का प्रबंधन महाराष्ट्र गोसेवा आयोग द्वारा ऑनलाइन किया जाएगा, और प्रत्येक जिले में एक जिला गोशाला सत्यापन समिति होगी।
प्रश्न 4: जैविक खेती में गाय का क्या योगदान है?
उत्तर: गाय के गोबर और गोमूत्र से बनी खाद भूमि की उर्वरता बढ़ाती है, जिससे फसलें बेहतर होती हैं।
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