क्या अजमेर शरीफ दरगाह का इतिहास, क्या यह शिव मंदिर की जमीन पर बनी है?

क्या अजमेर शरीफ दरगाह का इतिहास, क्या यह शिव मंदिर की जमीन पर बनी है?

राजस्थान के अजमेर में स्थित अजमेर शरीफ दरगाह, जो सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की समाधि है, इन दिनों विवादों में है। हिंदू सेना ने दावा किया है कि यह दरगाह एक पुराने शिव मंदिर की जमीन पर बनाई गई है। यह मामला अब अदालत में चल रहा है।

दरगाह का इतिहास

अजमेर शरीफ दरगाह, जिसे ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के नाम से भी जाना जाता है, भारत के अजमेर शहर में स्थित एक पवित्र सूफी स्थल है। यह दरगाह सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की अंतिम विश्राम स्थली है। उन्होंने 12वीं और 13वीं शताब्दी में भारत में सूफीवाद के चिश्ती सिलसिले की नींव रखी और “गरीब नवाज” (गरीबों के सहायक) के नाम से प्रसिद्ध हुए।

इतिहास और योगदान

प्रारंभिक जीवन और भारत आगमन

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का जन्म ईरान के सिस्तान क्षेत्र में हुआ था। उन्होंने अपना जीवन मानवता की सेवा और धार्मिक शिक्षाओं को फैलाने में समर्पित किया। भारत आने के बाद, वे 1192 में अजमेर पहुंचे और इसे अपना निवास स्थान बनाया।

धार्मिक शिक्षा और सेवा

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने भारत में सूफीवाद के चिश्ती ऑर्डर को बढ़ावा दिया। उनके उपदेश प्रेम, भाईचारे और दीन-दुखियों की सेवा पर आधारित थे। उनका जीवन सरलता और करुणा का उदाहरण था, जिसने लोगों को गहरी प्रेरणा दी।

दरगाह का निर्माण

उनकी मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों ने उनकी समाधि पर एक मजार का निर्माण किया, जो समय के साथ अजमेर शरीफ दरगाह के रूप में विकसित हुई। विभिन्न शासकों, खासकर मुगल सम्राटों, ने इस दरगाह के विस्तार और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मुगलों का योगदान

मुगल सम्राट अकबर, जो खुद इस दरगाह के प्रति अत्यंत श्रद्धालु थे, ने यहां कई बार दर्शन किए। उनकी यात्रा और संरक्षण ने इस दरगाह को और अधिक प्रसिद्ध बना दिया।

क्या है हिंदू सेना का दावा?

हिंदू सेना का कहना है कि दरगाह जिस जमीन पर बनी है, वह पहले एक शिव मंदिर थी। उनके दावे में ये बातें शामिल हैं:

  1. मंदिर के अवशेष:
    दरगाह के बुलंद दरवाजे और खंभों की बनावट मंदिर की वास्तुकला से मिलती-जुलती है।
  2. तहखाने में शिवलिंग:
    दावा किया गया है कि दरगाह के नीचे के हिस्से (तहखाने) में शिवलिंग हो सकता है।
  3. पुस्तक का जिक्र:
    1911 में लिखी गई हर बिलास शारदा की किताब Ajmer–Historical and Descriptive में कहा गया है कि दरगाह के निर्माण में मंदिर के हिस्सों का उपयोग किया गया।

अदालत का रुख

राजस्थान निचली अदालत ने हिंदू सेना की याचिका को स्वीकार किया है। अदालत ने दरगाह प्रबंधन से जवाब मांगा है और हिंदू सेना को अपने दावों के समर्थन में सबूत पेश करने को कहा है।

यह विवाद क्यों है महत्वपूर्ण?

1. इतिहास की समीक्षा:

हिंदू सेना का कहना है कि वे इस मुद्दे के जरिए इतिहास के तथ्यों को सामने लाना चाहते हैं।

2. धार्मिक भावनाएँ:

यह मामला हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों की धार्मिक भावनाओं से जुड़ा है, जिससे यह संवेदनशील बन जाता है।

3. सामाजिक और राजनीतिक असर:

ऐसे विवादों का असर समाज में धर्म और राजनीति पर भी पड़ता है।

दरगाह का महत्व

अजमेर शरीफ दरगाह धार्मिक एकता और सहिष्णुता का प्रतीक मानी जाती है। यहां न केवल मुस्लिम बल्कि हिंदू, सिख और ईसाई श्रद्धालु भी आते हैं। यह स्थल भारत की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाता है।

क्या होगा आगे?

अदालत ने अभी तक कोई अंतिम फैसला नहीं सुनाया है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस मामले को सुलझाने के लिए ऐतिहासिक और पुरातात्विक साक्ष्यों की जांच की जाएगी। अजमेर शरीफ दरगाह भारतीय संस्कृति और धार्मिक सौहार्द का प्रतीक है। लेकिन हिंदू सेना के दावे ने इसे विवादों के केंद्र में ला दिया है। अदालत का फैसला इस विवाद को सुलझाने में मदद करेगा।

(यह मामला अभी विचाराधीन है, और सभी पक्षों की सुनवाई के बाद ही कोई निष्कर्ष निकलेगा।)

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