West Bengal की सरकार द्वारा हाल ही में लिए गए निर्णय ने देश भर में चर्चा का विषय बना दिया है। राज्य विधानसभा का दो दिवसीय विशेष सत्र 2 सितम्बर से शुरू होने वाला है, जिसमें बलात्कार और हत्या के दोषियों को मृत्युदंड देने के लिए एक महत्वपूर्ण विधेयक पारित करने की योजना बनाई गई है। यह सत्र देश में बलात्कार विरोधी कानूनों को लेकर एक नया अध्याय लिख सकता है।
Highlights
- राज्य समिति की बैठक और विशेष सत्र की मंजूरी
- विधेयक की विशेषताएँ: एक कड़ा कानून
- विधेयक का समर्थन: सर्वदलीय सहमति
- विधेयक का पारित होना: एक त्वरित प्रक्रिया
- तृणमूल छात्र परिषद के स्थापना दिवस पर घोषणा
- विधेयक की मुख्य धाराएँ: एक नया आयाम
- चिकित्सा जाँच के नियम
- अन्य राज्यों के विधेयकों से तुलना
- भारतीय आपराधिक कानून का स्थिर ढांचा
- निष्कर्ष: एक नया कानून या एक नया विवाद?
राज्य समिति की बैठक और विशेष सत्र की मंजूरी
28 अगस्त को West Bengal मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अध्यक्षता में राज्य समिति की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई, जिसमें इस विशेष सत्र को आयोजित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। इस बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ने बलात्कार और हत्या के मामलों में दोषियों के खिलाफ कड़ी सजा सुनिश्चित करने के लिए सत्र बुलाने की आवश्यकता पर जोर दिया।
विधेयक की विशेषताएँ: एक कड़ा कानून
West Bengal सरकार ने इस प्रस्ताव को लेकर जो विधेयक तैयार किया है, उसमें बलात्कार के दोषियों को 10 दिन के भीतर फांसी की सजा दिलाने की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। विधेयक में बलात्कार की घटना को हत्या के समान माना जाएगा, चाहे पीड़िता जीवित बचे या नहीं। इसके साथ ही, अपराधियों के परिवारों पर भी भारी जुर्माना लगाने का प्रावधान है, जो इसे और भी सख्त बनाता है।
विधेयक का समर्थन: सर्वदलीय सहमति
इस विशेष सत्र के दौरान विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भी इस विधेयक को समर्थन देने की घोषणा की है। इसका समर्थन दर्शाता है कि इस मुद्दे पर सभी दलों में सहमति बन रही है, जो राज्य में कानून व्यवस्था को मजबूत करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
विधेयक का पारित होना: एक त्वरित प्रक्रिया
3 सितंबर कोWest Bengal विधानसभा में इस संशोधित विधेयक को पेश किया जाएगा। पहले दिन सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी जाएगी ताकि पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और अन्य महत्वपूर्ण हस्तियों को श्रद्धांजलि दी जा सके। इसके बाद, विधेयक पर चर्चा होगी और इसे पारित करके उसी दिन मंजूरी के लिए राजभवन भेज दिया जाएगा। यह त्वरित प्रक्रिया विधेयक की गंभीरता को दर्शाती है।
तृणमूल छात्र परिषद के स्थापना दिवस पर घोषणा
West Bengal मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 28 अगस्त को तृणमूल छात्र परिषद के स्थापना दिवस के मौके पर इस संशोधित विधेयक की घोषणा की थी। उन्होंने इस मौके पर राज्य की जनता को भरोसा दिलाया कि सरकार महिलाओं की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देगी। इस घोषणा के तहत ही विशेष सत्र बुलाने का निर्णय लिया गया है।
विधेयक की मुख्य धाराएँ: एक नया आयाम
इस विधेयक के तहत बलात्कार के मामलों को हत्या के समकक्ष रखा जाएगा और दोषियों को मौत की सजा देने का प्रावधान होगा। इसके साथ ही, अपराध की तिथि से 15 कार्य दिवस के अंदर न्याय प्रक्रिया पूरी करने की योजना बनाई गई है। यह कदम न्याय प्रणाली में तेज़ी लाने का प्रयास है।
चिकित्सा जाँच के नियम
विधेयक के अनुसार, पीड़िता की चिकित्सा जाँच अपराध की सूचना देने के 6 घंटे के भीतर होनी चाहिए। आरोपी की गिरफ्तारी के तुरंत बाद उसकी चिकित्सा जाँच की जानी चाहिए। यह प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया की शुद्धता और पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है।
अन्य राज्यों के विधेयकों से तुलना
पश्चिम बंगाल का यह प्रस्तावित प्रस्ताव अन्य राज्यों के बलात्कार विरोधी कानूनों से काफी अलग है। उदाहरण के लिए, आंध्र प्रदेश सरकार ने बलात्कार के मामलों के तहत दिशा-निर्देश 2019 में 21 दिनों की सुनवाई की थी। महाराष्ट्र शक्ति ज्वालामुखी 2020 में 30 दिनों की जांच में पूरी बात कही गई थी।
भारतीय आपराधिक कानून का स्थिर ढांचा
भारतीय वर्तमान आपराधिक कानून के अनुसार, 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों के साथ बलात्कार और हत्या के मामलों में या बार-बार अपराध करने पर मृत्युदंड का प्रस्ताव है। हालाँकि पश्चिम बंगाल के प्रस्तावित प्रस्तावक इस कानून को और भी सख्त बनाने का प्रयास कर रहे हैं, इसलिए जल्द से जल्द आदर्श को जल्द से जल्द न्याय के सिद्धांतों में लाया जा सके।
निष्कर्ष: एक नया कानून या एक नया विवाद?
पश्चिम बंगाल यह प्रस्तावित रॉकेट एक महत्वपूर्ण और वैज्ञानिक कदम है। जहां एक ओर यह कानून महिलाओं की सुरक्षा को बढ़ावा देता है, वहीं दूसरी ओर, यह न्याय प्रक्रिया की तत्कालता और स्थापना को भी चुनौती दे सकता है। इस कानून के पारित होने के बाद यह देखना दिलचस्प होगा कि देश के अन्य राज्यों और केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया क्या है।
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