Onam Sadhya: अथर एनर्जी, जो एक प्रमुख इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर निर्माता है, हाल ही में अपने कार्यालय में आयोजित ओणम समारोह के बाद ऑनलाइन आलोचनाओं का सामना कर रहा है। कंपनी के सह-संस्थापक तरुण मेहता और स्वप्निल जैन ने इस समारोह की तस्वीरें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पहले ट्विटर) पर साझा कीं, जिसमें वे पारंपरिक केरल की वेशभूषा, मुंडू, पहने हुए दिख रहे हैं। इस पोस्ट में कर्मचारियों को ओणम के मौके पर साध्या, जो केले के पत्ते पर परोसा जाने वाला एक पारंपरिक भोजन है, का आनंद लेते हुए भी दिखाया गया। लेकिन इस साध्या में चपाती के शामिल होने से इंटरनेट पर यूजर्स ने इसे गलत बताया और इस पर आपत्ति जताई।
Onam Sadhya: साध्या और ओणम का महत्व
ओणम केरल का सबसे बड़ा सांस्कृतिक पर्व है, जो मिथकीय राजा महाबली की वापसी का प्रतीक है। यह 10-दिवसीय उत्सव केरल के समाज और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है, जिसमें परिवार और समुदाय आपस में मिलकर इस त्योहार को धूमधाम से मनाते हैं। ओणम के अवसर पर साध्या का आयोजन किया जाता है, जिसमें विभिन्न प्रकार के पारंपरिक शाकाहारी व्यंजन शामिल होते हैं, जैसे अवियल, सांभर, और पायसम। यह भोज केले के पत्ते पर परोसा जाता है और इसे चावल के साथ खाना पारंपरिक माना जाता है।
Onam Sadhya: चपाती पर बवाल क्यों?
तरुण मेहता द्वारा साझा की गई पोस्ट में साध्या के साथ चपाती देखी गई, जो पारंपरिक रूप से उत्तर भारतीय भोजन का हिस्सा है। इस दृश्य ने तुरंत नेटिज़न्स का ध्यान खींचा और उन्हें इस पारंपरिक केरलियन भोज में चपाती शामिल होने पर आपत्ति जताने का मौका दिया। एक यूजर ने चुटकी लेते हुए कहा, “अगर यह चपाती है, तो मैं इस कंपनी को गिराने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दूंगा। माफ करना, आप अच्छे लोग हैं, लेकिन एक सीमा होती है, और आपने उसे पार कर लिया है।”
Onam Sadhya: सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं
X पर साझा की गई इस पोस्ट को 1.5 लाख से अधिक बार देखा गया और इसमें कई टिप्पणियां आईं, जिनमें यूजर्स ने अपनी नाराज़गी जाहिर की। एक यूजर ने लिखा, “साध्या में चपाती? कृपया इस पागलपन को बंद करें।” कुछ अन्य यूजर्स ने भी साध्या में चपाती को शामिल करने पर अपनी नाराज़गी जाहिर की और कहा कि यह एक सांस्कृतिक विचलन है।
एक यूजर ने कहा, “साध्या में चावल के बजाय चपाती… कृपया दूर रहें।” वहीं, एक अन्य ने टिप्पणी की, “क्यों? अपनी खुद की थाली बना सकते थे, न? किसी पारंपरिक चीज़ को बदलकर उसे खराब करने की क्या ज़रूरत है?”
Onam Sadhya: मुंडू पहनने के तरीके पर भी उठे सवाल
चपाती के अलावा, कुछ यूजर्स ने मुंडू पहनने के तरीके पर भी सवाल उठाए। तरुण मेहता और स्वप्निल जैन, दोनों ने अपनी मुंडू को बाईं तरफ बांधा था, जबकि यह तमिल शैली में बंधी हुई दिख रही थी। एक यूजर ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा, “मलयाली लोग मुंडू को दाईं तरफ बांधते हैं। यह मुंडू बाईं तरफ क्यों बंधी है? यह तो तैयारमुंडू जैसा लग रहा है।”
Onam Sadhya: अथर एनर्जी पर असर
चपाती को साध्या में शामिल करने के इस विवाद ने ऑनलाइन लोगों को बुरी तरह से नाराज कर दिया। एक यूजर ने तो यहां तक कहा, “अपने कुक को निकाल दीजिए, साध्या में चपाती?” इससे यह साफ हो गया कि लोगों को अपने त्योहारों और उनकी परंपराओं के साथ छेड़छाड़ किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं है।
Onam Sadhya: सांस्कृतिक समावेशन का उल्टा असर
ओणम जैसे त्योहार का जश्न केवल एक राज्य या एक समुदाय तक सीमित नहीं है। भारत की विविधता और विभिन्न संस्कृतियों का सम्मान करते हुए, कई लोग अपनी संस्कृति से अलग त्योहारों को भी खुशी से मनाते हैं। हालांकि, यह घटना इस बात का उदाहरण है कि जब किसी संस्कृति की परंपराओं से छेड़छाड़ होती है, तो इससे गलतफहमी पैदा हो सकती है।
अथर एनर्जी के इस मामले में, हालांकि ओणम के उत्सव का आयोजन सराहनीय था, लेकिन साध्या जैसे पारंपरिक भोजन में चपाती को शामिल करना एक बड़ी गलती मानी गई। परंपराओं का सम्मान करना और उन्हें सही तरीके से समझना महत्वपूर्ण है, खासकर तब जब आप किसी सांस्कृतिक आयोजन का हिस्सा बन रहे हों।
Onam Sadhya: एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत
ओणम, जिसे थिरुवोनम भी कहा जाता है, केरल का एक प्रमुख त्योहार है, जो हर साल राज्य में भरपूर धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार केरल की सांस्कृतिक धरोहर और समृद्ध परंपराओं को दर्शाता है। इस अवसर पर साध्या का आयोजन किया जाता है, जो ओणम का एक मुख्य आकर्षण होता है। यह भोज, जो कई व्यंजनों से मिलकर बनता है, केले के पत्ते पर परोसा जाता है और इसे चावल के साथ खाया जाता है।
अथर एनर्जी के ओणम समारोह के दौरान चपाती को साध्या में शामिल करना एक छोटी गलती लग सकती है, लेकिन इसने बड़ी सांस्कृतिक बहस को जन्म दे दिया। सोशल मीडिया पर हुई आलोचना ने यह दिखाया कि भारतीय त्यौहार और उनकी परंपराओं का सम्मान अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह घटना हमें यह सिखाती है कि जब हम किसी संस्कृति का हिस्सा बनते हैं, तो उसकी परंपराओं और रीति-रिवाजों का गहन अध्ययन और सम्मान करना आवश्यक है।
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