भारत में महिला सुरक्षा एक गंभीर और महत्वपूर्ण मुद्दा है, जो समाज और सरकार दोनों के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। जैसे की अभी हाल ही में जो घटना घटी जिसमे एक डॉक्टर का बलात्कार कर मार डाला है, यह सब महिला सुरक्षा पर कड़ा सवाल खड़ा करती है। महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों को देखते हुए, सरकार ने कई कानून बनाए हैं जो महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए लागू किए गए हैं। ये कानून महिलाओं को उनके अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें एक सुरक्षित और सम्मानित जीवन जीने में मदद करते हैं। जिसे हर महिला को जानना बहुत जरुरी है।
महिला सुरक्षा से संबंधित प्रमुख कानून
- दहेज निषेध अधिनियम, 1961
यह कानून दहेज की मांग और दहेज के लिए महिलाओं को प्रताड़ित करने को अवैध बनाता है। इस कानून के तहत दहेज लेने और देने, दोनों ही अपराध हैं, और दोषी पाए जाने पर सजा का प्रावधान है। - घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005
यह कानून महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान करता है। घरेलू हिंसा में शारीरिक, मानसिक, यौन, आर्थिक, और भावनात्मक हिंसा शामिल होती है। इस कानून के तहत पीड़ित महिलाओं को तुरंत सुरक्षा और राहत प्रदान की जाती है, जिसमें पुलिस सुरक्षा, मेडिकल सहायता, और शरण की सुविधा शामिल है। - कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013
यह कानून कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न को रोकने और उनके अधिकारों की रक्षा करने के लिए लागू किया गया है। इस कानून के तहत प्रत्येक संगठन में एक आंतरिक शिकायत समिति का गठन अनिवार्य है, जो यौन उत्पीड़न की शिकायतों का निवारण करती है। - लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम (POCSO), 2012
यह कानून नाबालिग बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों से उनकी सुरक्षा के लिए बनाया गया है। POCSO अधिनियम के तहत, बच्चों के साथ यौन शोषण करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाती है। इस कानून का उद्देश्य बच्चों को यौन शोषण, उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी से बचाना है। - बलात्कार के खिलाफ कानून (BNS की धारा 375 और 376)
भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 375 बलात्कार को परिभाषित करती है, जबकि धारा 376 बलात्कार के दोषियों के लिए सजा का प्रावधान करती है। 2013 में निर्भया कांड के बाद, बलात्कार के मामलों में सजा को और कड़ा किया गया, और कानून में कई सुधार किए गए, जिसमें गैंगरेप और बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा के लिए सख्त सजा का प्रावधान शामिल है। - वृद्धि अधिनियम, 1986
यह कानून महिला भ्रूण हत्या को रोकने के लिए बनाया गया है। इस अधिनियम के तहत, गर्भ में बच्चे के लिंग की जाँच करना और गर्भपात करना अवैध है। इस कानून का उद्देश्य समाज में लिंग अनुपात को संतुलित करना और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना है। - एसिड हमले के खिलाफ कानून (BNS की धारा 326A और 326B)
एसिड हमले के मामलों में दोषियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करने के लिए भारतीय न्याय संहिता में धारा 326A और 326B जोड़ी गई। इस कानून के तहत एसिड हमले के दोषियों को कठोर कारावास और जुर्माने की सजा दी जाती है। साथ ही, पीड़ितों को मुआवजा और चिकित्सा सहायता प्रदान की जाती है। - साइबर अपराधों के खिलाफ कानून
महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराधों, जैसे साइबर स्टॉकिंग, साइबर बुलिंग, और अश्लील सामग्री के वितरण को रोकने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act) के तहत सख्त प्रावधान किए गए हैं। इस कानून का उद्देश्य इंटरनेट और सोशल मीडिया पर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
महिलाओं का आदर्श चित्रण (निषेध) अधिनियम, 1986
महिलाओं का अशोभनीय और क्रीड़ा चित्रण (निषेध) अधिनियम, 1986 इस अधिनियम में विज्ञापन, पुस्तकें, पत्रिकाएँ, और अन्य माध्यमों में महिलाओं की कलात्मक तस्वीरें और सामग्री का प्रकाशन, प्रसारण और वितरण शामिल है। इसके तहत महिलाओं को गलत तरीके से विज्ञापन और सामग्री पर चित्रित करने पर दंड का प्रावधान है। इस कानून का उद्देश्य महिलाओं के सम्मान और प्रतिष्ठा की रक्षा करना और उनके साथ भेदभाव करना, पूर्णता और मताधिकार प्रस्तुतियों से बचाना है।
सती प्रथा (रोकथाम) अधिनियम, 1987 के अंतर्गत नियम
महिला सुरक्षा के तहत सती प्रथा (रोकथाम) अधिनियम, 1987 के तहत, सती आयोग (रोकथाम) नियम, 1988 को लागू किया गया, जो सती प्रथा के किसी भी रूप में रोक और इस संबंध में कड़ी कार्रवाई के लिए बनाए गए हैं। इन प्रावधानों के अंतर्गत, राज्य सरकार और अन्य अधिकारियों को सती प्रथा के कार्यों को रोकने और सती स्थानों को हटाने का अधिकार दिया गया है। प्राचीन काल में निषेधाज्ञाओं का प्रकाशन, मंदिर या संरचनाओं को हटाने के लिए नोटिस जारी करना, और उस दौरान बरामद की गई संपत्तियों की सूची बनाने का प्रस्ताव शामिल है। साथ ही, इन स्कूलों के तहत सती प्रथा को बढ़ावा देने वालों पर सख्त कार्रवाई करने का प्रस्ताव है।
राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990
राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 भारत में महिला अधिकारों की रक्षा और उनके उद्देश्यों के लिए राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना का उद्देश्य बनाया गया था। इस अधिनियम के तहत राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई है, जो महिलाएं आतंकवादियों के खिलाफ हो रही हैं, उनकी जांच करती है, उनकी समस्याओं का समाधान करती है, और सरकार को आवश्यक वकील देती है। आयोग को जांच, अध्ययन और रिपोर्ट देने के अधिकार प्राप्त हैं, और यह जागरूकता के साथ-साथ कानूनी सुधारों की वकालत भी करता है। यह अधिनियम महिला सुरक्षा और सामाजिक, आर्थिक और कानूनी स्थिति को बेहतर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005
घरेलू हिंसा से महिला सुरक्षा अधिनियम, 2005 भारत में महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान करने के लिए कानून बनाया गया है। इस अधिनियम के अंतर्गत शारीरिक, मानसिक, यौन, सांस्कृतिक और आर्थिक हिंसा को घरेलू हिंसा माना गया है। यह कानून महिला को अपने पति, मुस्लिम समुदाय के लोगों या किसी अन्य समुदाय में होने वाली हिंसा से मुक्ति और न्याय का अधिकार देता है। अधिनियम के अंतर्गत महिला को संरक्षण, निवास, वेश्यावृत्ति और भरण-पोषण का अधिकार है। इसके अलावा, इसमें संरक्षण अधिकारियों के प्रस्ताव और तत्काल न्याय सुनिश्चित करने के प्रावधान भी शामिल हैं।
बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006
बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 भारत में बाल विवाह को रोकने और ख़त्म करने के लिए कानून बनाया गया है। यह अधिनियम 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों और 21 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों के विवाह को गैरकानूनी और दंडनीय अपराध घोषित करता है। इसके तहत, बाल विवाह के खिलाफ, उसका समर्थन करना, या भाग लेने वालों के खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई का प्रस्ताव है। इस कानून के अंतर्गत बाल विवाह को रद्द करने और पीड़ित को संरक्षण और राहत देने का अधिकार भी दिया गया है। बाल विवाह निषेध अधिनियम का उद्देश्य बाल विवाह जेईएसईआर पार्टनरशिप को समाप्त करना और बच्चों के अधिकारों और भविष्य की रक्षा करना है।
महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और सुरक्षा) अधिनियम, 2013
महिला सुरक्षा (रोकथाम, निषेध और सुरक्षा) अधिनियम, 2013, जिसे “पॉश अधिनियम” भी कहा जाता है, भारत में महिला सुरक्षा के तहत यौन उत्पीड़न पर रोक, उसकी जांच करने और उसे समाप्त करने के लिए कानून बनाया गया है. इस अधिनियम के तहत, सभी आवेदकों के लिए आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) का गठन करना अनिवार्य है, जो यौन उत्पीड़न की सुनवाई और पूरक का कार्य करता है। कानूनी सिद्धांत किसी भी प्रकार के यौन उत्पीड़न के खिलाफ, जैसे अशोभनीय टिप्पणी, अनाचाही शारीरिक व्यवहार, या अनैतिक व्यवहार वाली महिला सुरक्षा प्रदान करता है। यह अधिनियम महिलाओं के लिए एक सुरक्षित और सुरक्षित कार्य वातावरण की दिशा सुनिश्चित करना एक महत्वपूर्ण कदम है।
मानव संसाधन (रोकथाम, केयर एंड रेज़मार्क) 2021 ड्राफ्ट
मानव अधिकार (रोकथम, केयर और ज़ालिम) का मसौदा, 2021 का मसौदा मानव अधिकार को प्रतिबंधित करता है, मानदंड की सुरक्षा और अनुपात, और अधिकार से संबंधित अपराध के लिए सख्त दंड का प्रावधान करता है। इस कारखाने का उद्देश्य मानव सिद्धांतों के सभी सिद्धांतों को समाप्त करना है, जिसमें यौन शोषण, रसायन शास्त्र, अंग व्यापार, और बाल दस्तावेज़ शामिल हैं।
मुख्य उद्यम में शामिल हैं:
- रोकथाम: मानव जाति पर प्रतिबंध के लिए असंगठित कानून, जागरूकता अभियान, और सहयोगी प्रयास।
- देखभाल और संख्या: लोगों के शिकार के लिए सुरक्षित घर, चिकित्सा, परामर्श और कानूनी सहायता की व्यवस्था।
- दंड: अशिक्षितों के लिए कठोर सज़ा, जिसमें भारी कमी और अयोग्यता शामिल है। सहयोगी दल और अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेज़ों के मामलों में और भी कठोर दंड का प्रस्ताव है।
- समन्वय: केंद्र और राज्य स्तर पर विशेष मस्जिद की स्थापना, जो दस्तावेजों के मामलों की जांच और सूची के निर्धारण के लिए काम की रूपरेखा। यह आर्किटेक्चर एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करता है, जो कि सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा और शस्त्रागार पर सख्त कार्रवाई को सुनिश्चित करता है।
भारत में हर घंटे महिलाओं के ख़िलाफ़ 51 अपराध
आंकड़ों के मुताबिक, 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या 4,45,256 तक पहुंच गई, जबकि हर घंटे लगभग 51 आंकड़े दर्ज किए गए। यह 2021 के 4,28,278 मामले और 2020 के 3,71,503 मामलों की तुलना में एक महत्वपूर्ण वृद्धि है। फार्मासिस्टबी की रिपोर्ट के अनुसार, प्रति लाख जनसंख्या पर अपराध दर 66.4 है और वास्तु दर 75.8% है। महिलाओं के खिलाफ सबसे ज्यादा अपराध पति या रिश्तेदारों के खिलाफ (31.4%) के रूप में आरोप लगाए गए, इसके बाद साहिल और बदनाम (19.2%), शीला भंग करने के इरादे से हमला (18.7%) और बलात्कार (7.1%) आए हैं
महिला सुरक्षा कानूनों का महत्व
महिला सुरक्षा कानून न केवल महिलाओं को उनके अधिकारों की सुरक्षा प्रदान करते हैं, बल्कि समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान और समानता की भावना को भी बढ़ावा देते हैं। इन कानूनों के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने का प्रयास किया जाता है, ताकि वे समाज में बिना किसी भय के अपनी जिंदगी जी सकें।
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