संभल की जामा मस्जिद विवाद इन दिनों चर्चा का केंद्र बनी हुई है। यह मस्जिद लंबे समय से हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच विवाद का कारण रही है। हाल ही में, सिविल कोर्ट के आदेश पर मस्जिद का सर्वे किया गया, जिसके बाद इलाके में हिंसा भड़क उठी। इस लेख में हम “संभल मस्जिद विवाद” के इतिहास, विवाद और हाल की घटनाओं के बारे में विस्तार से जानेंगे।
हाल की घटनाएं और कोर्ट का आदेश
संभल की सिविल कोर्ट ने जामा मस्जिद का सर्वे करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि मस्जिद का वीडियो और फोटो लेकर रिपोर्ट तैयार की जाए। हिंदू पक्ष का दावा है कि यह मस्जिद पहले एक हिंदू मंदिर थी, जिसे बाबर ने तोड़कर मस्जिद बना दिया। इस विवाद के कारण “संभल मस्जिद विवाद” फिर से सुर्खियों में है।
हिंसा कैसे शुरू हुई?
जब सर्वे टीम मस्जिद पहुंची, तो वहां विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए। प्रदर्शनकारियों ने पत्थर फेंके और सरकारी वाहनों को नुकसान पहुंचाया। स्थिति बिगड़ने पर पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े। प्रशासन ने इलाके में सुरक्षा बढ़ा दी और शांति बनाए रखने के लिए कई लोगों को हिरासत में लिया। “संभल मस्जिद विवाद” ने इलाके में तनाव पैदा कर दिया है।
मस्जिद का इतिहास और विवाद
मस्जिद का निर्माण
मुस्लिम पक्ष का कहना है कि जामा मस्जिद का निर्माण 14वीं शताब्दी में मोहम्मद बिन तुगलक ने करवाया था, और बाद में बाबर ने इसे ठीक करवाया। “संभल मस्जिद विवाद” के इस हिस्से पर मुस्लिम पक्ष का यह दावा है।
हिंदू पक्ष का दावा
हिंदू पक्ष का कहना है कि जामा मस्जिद पहले हरिहर मंदिर थी, जो भगवान विष्णु के कल्कि अवतार से जुड़ा हुआ था। उनका दावा है कि बाबर ने 1529 में इस मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना दी, जिससे “संभल मस्जिद विवाद” और गहरा हो गया।
पुरानी रिपोर्ट क्या कहती है?
1874-75 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की रिपोर्ट में बताया गया था कि मस्जिद में हिंदू वास्तुकला के निशान मिले हैं।
- मस्जिद की दीवारों और स्तंभों पर हिंदू शैली की नक्काशी देखी गई है।
- एक शिलालेख में बाबर का नाम लिखा गया है।
शिलालेख का विवाद
मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह शिलालेख मस्जिद का असली प्रमाण है, जबकि हिंदू पक्ष इसे नकली मानता है और कहता है कि इसे जानबूझकर जोड़ा गया है। “संभल मस्जिद विवाद” में यह शिलालेख अहम भूमिका निभाता है।
दोनों पक्षों के तर्क
हिंदू पक्ष:
- जामा मस्जिद पहले हरिहर मंदिर थी।
- बाबर ने मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई।
- एएसआई रिपोर्ट में हिंदू वास्तुकला के निशान मिले हैं, जो “संभल मस्जिद विवाद” को और जटिल बनाते हैं।
मुस्लिम पक्ष:
- मस्जिद मंदिर तोड़कर नहीं बनाई गई।
- 1947 के बाद धार्मिक स्थलों के स्वरूप को न बदलने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश उनके पक्ष में है।
- मस्जिद का शिलालेख असली है, जो “संभल मस्जिद विवाद” को समर्थन देता है।
अदालत और प्रशासन की कार्रवाई
कोर्ट ने मस्जिद का सर्वे कर रिपोर्ट देने का आदेश दिया है। वहीं, इलाके में भारी संख्या में पुलिसबल तैनात किया गया है और शांति बनाए रखने के लिए कई लोगों को पाबंद किया गया है। “संभल मस्जिद विवाद” को लेकर प्रशासन की सख्त कार्रवाई ने स्थिति को नियंत्रित करने का प्रयास किया है।
विवाद क्यों है खास?
- सांप्रदायिक सौहार्द: यह विवाद हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच भाईचारे को प्रभावित कर सकता है, और “संभल मस्जिद विवाद” इसी वजह से बेहद महत्वपूर्ण है।
- ऐतिहासिक सच: यह मामला भारत के इतिहास से जुड़ी सच्चाई को सामने लाने का अवसर है। “संभल मस्जिद विवाद” में इतिहास और आस्था दोनों की अहमियत है।
- कानूनी पहलू: सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि 1947 के बाद धार्मिक स्थलों के स्वरूप को न बदला जाए, और यह “संभल मस्जिद विवाद” में प्रमुख भूमिका निभाता है।
संभल की जामा मस्जिद का विवाद धार्मिक आस्था और ऐतिहासिक दावों के बीच उलझा हुआ है। यह मामला न केवल इतिहास और पुरातत्व से जुड़े तथ्यों को सामने लाने का है, बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने की भी बड़ी चुनौती है। अदालत का फैसला और प्रशासन की सख्ती इस विवाद को हल करने में अहम भूमिका निभाएगी। “संभल मस्जिद विवाद” का समाधान भारत में सांप्रदायिक एकता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
ये रहे कुछ आधिकारिक जानकारियां
नोट: सभी से अपील है कि वे शांति बनाए रखें और कानून का पालन करें, ताकि सच सामने आ सके और क्षेत्र में सौहार्द का माहौल बने।
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